Saturday 8 August 2015

Sunday Special - पॉर्न का पंचनामा

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इसे जो देखते हैं, वे इसके बारे में कुछ बोलना नहीं चाहते। जो नहीं देखते, वे इस पर बात नहीं करना चाहते और जो इसे समझते हैं, वे इसे बुरी बला मानते हैं। यह तासीर है पॉर्न के तीखे नशे की। इस नशे के सुरूर और इससे जुड़े सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश कर रहे हैं
पॉर्न पर लगने वाले इस आरोप को यह तर्क सही साबित करता है कि पॉर्न देखने वाला हर शख्स भले ही कोई रेपिस्ट न हो लेकिन रेप की घटनाओं को अंजाम देने वाले अमूमन पॉर्न के शौकीन होते ही हैं। पुलिस से जुड़े कई सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि रेप करने वालों के मोबाइल और कंप्यूटरों से काफी पॉर्न कंटेंट बरामद होता है। यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह के मुताबिक कई रेपिस्ट ने इस बात को कबूला है कि उन्हें रेप करने का ख्याल पॉर्न देखने के बाद ही आया।
सोशल वर्कर रंजना कुमारी का कहना है कि पॉर्न मूल रूप से महिला विरोधी और हिंसक विचारधारा को बढ़ावा देता है। निर्भया के साथ हुए रेप की घटना में जिस तरह की बर्बरता सामने आई थी, उसके पीछे भी एक वजह पॉर्न में दिखाई जाने वाली हिंसक गतिविधियां थीं। उनके अनुसार पॉर्न महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई (चीज समझना) करने का जरिया है, जो महिला उत्पीड़न को बढ़ावा देता है। सेक्सॉलजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी इस तरह की घटनाओं के लिए पूरी तरह से पॉर्न को दोषी नहीं मानते। उनके मुताबिक पॉर्न का बुरा असर ज्यादातर उन्हीं पर ही पड़ता है, जिनकी सेक्स एजुकेशन कम होती है। यहां सेक्स एजुकेशन का मतलब सेक्स के बारे में सबकुछ जानना न होकर, इससे जुड़ा सही आचरण है। डॉ. कोठारी के अनुसार सेक्स एजुकेशन का मतलब सिर्फ यह जानना नहीं है कि कौन से बॉडी पार्ट का क्या फंक्शन है बल्कि यह भी है कि महिला और पुरुष की इसमें बराबर की भागीदारी जरूरी है। दोनों की अपनी जरूरतें और सीमाएं हैं। कई बार देखने में आया है कि पढ़े-लिखे पुरुष भी सेक्सुअल एक्टिविटी से जुड़ी इन बातों को नहीं समझ पाते और सेक्स में स्त्री की इच्छा का सम्मान नहीं करते।

वैज्ञानिकों की मानें तो पॉर्न देखने से इंसान के दिमाग का एक खास हिस्सा इससे डैमेज हो जाता है। जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डिवेलपमेंट के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया कि जो लोग पॉर्न देखने के आदी हो जाते हैं, अमूमन उनके दिमाग में मौजूद 'स्ट्राएटम' छोटा रहता है। 'स्ट्राएटम' दिमाग का वह हिस्सा है जिसमें 'प्रेरणा और पाने की इच्छा' जैसी गतिविधियां प्रॉसेस होती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादा पोर्न देखने से दिमाग के इस हिस्से को चोट पहुंचती है। इस तरह की रिसर्च करने वाली डॉ. शिमाने का कहना है कि दिमाग का एक और हिस्सा है जो स्ट्राएटम का पार्ट है तब सक्रिय हो जाता है जब लोग पॉर्न देखते हैं। इस जर्मन रिसर्च में 21-45 साल के 64 पुरुषों को शामिल किया गया। इनसे पॉर्न देखने की आदतों और मस्तिष्क के रिएक्शन का अध्ययन किया गया।
रेप और पॉर्न के कनेक्शन को कई एक्सपर्ट्स इस तर्क से खारिज करते हैं कि रेप उन जगहों पर भी होता है जहां पॉर्न की पहुंच नहीं है। देश के दूर-दराज के गावों में भी रेप होते हैं लेकिन वहां पर पॉर्न नहीं देखा जाता। इसका मतलब साफ है, सिर्फ इकलौता पॉर्न रेप के लिए जिम्मेदार नहीं है। वह कई कारणों में एक कारण हो सकता है।
शादी को बर्बाद करता है पॉर्न
पत्नी घरलू काम के बोझ के साथ ऑफिस भी संभाल रही है लेकिन पति को पॉर्न देखने से फुर्सत नहीं है। पॉर्न के लत का हथौड़ा रिश्तों पर ऐसी चोट करता है कि रिश्तों गहरी दरार पैदा होने लगती है।
रिलेशनशिप काउंसलर और साइकॉलजिस्ट अरुणा ब्रूटा का कहना है कि पॉर्न देखने की आदत घरों को तोड़ने का काम कर रही है। जिस पति के पास अपनी पत्नी के साथ कुछ वक्त बिताने का टाइम नहीं है, वह घंटों पॉर्न देखता रहता है। जिंदगी वैसे भी बिजी है और पॉर्न के शौकीन अपना कीमती वक्त इसमें जाया करते हैं। उनका कहना है कि कई लोग इस तरह की समस्या लेकर मेरे पास आए हैं कि पॉर्न ने उनकी जिंदगी को उथल-पुथल कर रखा है। पॉर्न में बॉडी स्ट्रक्चर और एक्टिविटी के लेवल पर जो परफेक्शन दिखाया जाता है, पॉर्न देखने वाला उसी परफेक्शन की चाह अपने जीवनसाथी में करने लगता है। असल जिंदगी में परफेक्शन मुमकिन नहीं और यही कारण है कि उसे अपना जीवन साथी में आकर्षण नजर नहीं आता। इसी कारण पॉर्न में दिखाई जाने वाली हिंसा जहां एक तरफ शादी में रेप जैसी चीज को जन्म देती है, वहीं पॉर्न का ग्लैमर शादी के बाहर संबंधों को बढ़ावा देता है।
डॉ. कोठारी पॉर्न को सेक्स की दबी इच्छाओं को बाहर निकालने का सबसे अच्छा साधन मानते हैं लेकिन एक शर्त के साथ। पॉर्न देखने वाला अगर यह समझता है कि मूवी में दिखाए जाने वाले विजुअल असल जिंदगी में मुमकिन नहीं हैं तो पॉर्न काम के बोझ के नीचे दबे इंसान में सेक्स की इच्छा को जगाने का अच्छा जरिया साबित हो सकता है। डॉ. कोठारी मानते हैं कि सेक्स इंसानी प्रकृति का हिस्सा है और इसके बारे में सही जानकारी का अभाव इस प्रकृति को विकृति में तब्दील कर देता है। रंजना कुमारी का कहना है कि यह बात सही है कि सेक्स इंसानी नेचर का हिस्सा है लेकिन इसे किस हद तक स्वीकार किया जाए, इसे भी समझना जरूरी है। पॉर्न से कोई भी इंसान अपने मन की दबी इच्छाओं को नहीं निकालता बल्कि उसे और हिंसक तरीके से मौका मिलते ही बाहर निकालता है।


सेक्स एजुकेशन देता है पॉर्न?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि सेक्स के बारे में सही जानकारी न मिल पाने की वजह से ही लोग पॉर्न की तरफ डायवर्ट होते है। सीनियर सायकायट्रिस्ट डॉ. मनीष जैन का कहना है कि सही सेक्स एजुकेशन से पॉर्न देखने की आदत पर लगाम लगाना मुमकिन होगा। डॉ. कोठारी के अनुसार सेक्स एजुकेशन को सिलेबस का हिस्सा बनाने की जिम्मेदारी सरकार की है और ऐसा न कर पाने की वजह से पैदा होने वाली दिक्कतों को सरकार पॉर्न के मत्थे मढ़ रही है। पॉर्न सेक्स एजुकेशन के लिए नहीं इस्तेमाल किया जा सकता क्योंकि इसे फिल्म की तरह शूट किया जाता है। जिस तरह किसी फिल्म को देख कर हम रियल लाइफ की चीजें नहीं सीख सकते, उसी तरह पॉर्न को देख कर सेक्स की समझ नहीं पैदा कर सकते। एंड्रॉमेडा एंड्रॉलजी एंड सेक्सुअल मेडिसिन सेंटर, हैदराबाद के डायरेक्टर डॉ. सुधीर कृष्णमूर्ति का मानना है कि सही सेक्स एजुकेशन का अभाव दोधारी तलवार का काम कर रहा है। गलत जानकारियां और पॉर्न के बुरे प्रभाव बढ़ते जा रहे हैं। कई लोग यह भी मानते हैं कि पॉर्न से शारीरिक कमजोरी होती है। डॉ. कोठारी इस धारणा को सही नहीं मानते। उनका कहना है कि सेक्स एजुकेशन पाया इंसान पॉर्न देख कर खुद को एक या दूसरी तरह से संतुष्ट कर लेता है। पॉर्न देखने भर से कोई इंसान कमजोर नहीं हो सकता। कमजोर होना, सिर घूमना या कंपकपी आने जैसी बातें सिर्फ वहम है।
तकरीबन हर एक्सपर्ट मानता है कि पॉर्न कहीं-न-कहीं लोगों में भ्रम और कॉम्प्लेक्स पैदा करता है। पॉर्न देखने वाले सेक्स करने की अपनी क्षमता और फ्रीक्वेंसी की तुलना पॉर्न फिल्मों से करने लगते हैं। प्राइवेट पार्ट के साइज से लेकर महिलाओं के शरीर से जुड़े कई तरह के कॉम्प्लैक्स पॉर्न की देन हैं। यह कई और गलत चीजों को भी जन्म देता है। साइकॉलजिस्ट अरुणा ब्रूटा के मुताबिक जो लोग पॉर्न के चंगुल में फंसे होते हैं, उन्हें अक्सर सिगरेट और शराब की लत भी लग जाती है। पॉर्न देखने की लत से पीड़ित इंसान कहीं-न-कहीं कॉन्फिडेंस भी खो चुका होता है और इससे उबरने के लिए वह नशे का सहारा लेता है। नशा उसकी मदद तो नहीं करता बल्कि परेशानियों को और बढ़ा देता है। इस तरह की लत का शिकार इंसान दरअसल इम्पल्सिव डिसऑर्डर का शिकार होता है और इसके बहाव में हर बुरी लत की तरफ खिंचता जाता है।
सीनियर साइकायट्रिस्ट डॉ. संजय चुग का मानना है कि जिस तरह हर चीज की अति बुरी है, उसी तरह पॉर्न की अति भी बुरी है। अगर पॉर्न देखने की वजह से आपकी जिंदगी उथल-पुथल हो गई है तो इसका मतलब यह अपना बुरा असर दिखा रही है। पॉर्न देखने के एडिक्शन को इस बात से नहीं नापा जा सकता कि कोई कितनी देर तक पॉर्न देखता है। वैज्ञानिकों की मानें तो पॉर्न देखने से इंसान के दिमाग का एक खास हिस्सा इससे डैमेज हो जाता है। जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डिवेलपमेंट के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया कि जो लोग पॉर्न देखने के आदी हो जाते हैं, अमूमन उनके दिमाग में मौजूद 'स्ट्रेटियम' छोटा रहता है। 'स्ट्राएटम' दिमाग का वह हिस्सा है जिसमें 'प्रेरणा और पाने की इच्छा' जैसी गतिविधियां प्रॉसेस होती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादा पोर्न देखने से दिमाग के इस हिस्से को चोट पहुंचती है। इस तरह की रिसर्च करने वाली डॉ. शिमाने का कहना है कि दिमाग का एक और हिस्सा है जो स्ट्राएटम का पार्ट है तब सक्रिय हो जाता है जब लोग पॉर्न देखते हैं। इस जर्मन रिसर्च में 21-45 साल के 64 पुरुषों को शामिल किया गया। इनसे पॉर्न देखने की आदतों और मस्तिष्क के रिएक्शन का अध्ययन किया गया।
अगर पॉर्न देखने की आदत की वजह से पर्सनल, सोशल और प्रफेशनल लाइफ पॉर्न देखने की वजह से बुरी तरह प्रभावित हो रही है तो इसका मतलब है कि पॉर्न के एडिक्शन का शिकंजा कस चुका है। पॉर्न बैन करने से समस्या का समाधान नहीं होगा। किसी भी चीज को जितना बैन किया जाता है, उसे देखने की चाहत बढ़ती जाती है। यह बात हर तरह के नशे पर लागू होती है - सिगरेट हो, शराब हो या फिर कोई दूसरा नशा।
डॉ. कोठारी का मानना है कि पॉर्न देखने में कोई बुराई नहीं है जब तक कि इसे एडल्ट एंटरटेनमेंट के लिए देखा जाए। पॉर्न प्रफेशनल्स की बनाई और पब्लिक डिस्प्ले के लिए बनाई गई मूवीज़ हैं और इन्हें ऐसे ही देखना चाहिए। इसे जिंदगी का हिस्सा बनाने की कोई जरूरत नहीं। डॉ. चुग का भी मानना है कि कोई पॉर्न देखे या न देखे, इस पर फैसला वह इंसान ही कर सकता है। जहां तक बात है सेहत पर पड़ने वाले असर की तो जब तक इंसान अपनी जिंदगी को नॉर्मल तरीके से एक सामाजिक इंसान की तरह जी रहा है और पॉर्न का उसकी जिंदगी पर कोई बुरा असर नहीं पड़ रहा, तब तक पॉर्न देखने में कोई बुराई नहीं है।

बच्चों के लिए जहर है पोर्न?
सरकार ने भी पॉर्न से बैन हटा दिया है लेकिन चाइल्ड पॉर्न पर बैन कायम रखा है। चाइल्ड पॉर्न की समस्या से भारत ही नहीं, अमेरिका जैसे बड़े देश भी जूझ रहे हैं। हालांकि चाइल्ड पॉर्न पर पाबंदी तो लगा सकते हैं लेकिन बच्चों को पोर्न देखने से कैसे रोका जाए? तमाम एक्सपर्ट्स इसे अपराध के सबसे बुरे रूप के तौर पर देखते हैं। अरुणा ब्रूटा का कहना है कि बच्चों की मोबाइल फोन पर आसान पहुंच इसे और खतरनाक बना रही है। बच्चे कम उम्र से ही उन चीजों को देखने लगते हैं, जिनकी समझ उन्हें बिल्कुल नहीं होती। आजकल बच्चों की समझ तकनीक को लेकर पिछली जेनरेशन से काफी ज्यादा है और इंटरनेट उनके लिए किसी भी चीज तक आसानी से पहुंचने का साधन बन रहा है। कंप्यूटर से लेकर टैब और मोबाइल तक, सब पर आराम से पॉर्न देखा जा सकता है। अक्सर देखने में आता है कि जो बच्चे बचपन में चोरी करते हैं, ज्यादा ऐशो-आराम का जीवन बिताते हैं और किसी भी चीज की इच्छा होने पर उसे आसानी से पा लेते हैं, आगे जाकर पॉर्न देखने की आदत का शिकार होते हैं। बच्चों को पॉर्न से दूर रखने का एक ही तरीका है कि पैरंट्स खुद को रोल मॉडल बनाएं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्राणायाम और ध्यान जैसी चीजों के साथ फिजिकली एंगेज रखने वाली एक्टिविटी में बच्चों को लगाने से पॉर्न से बच्चों को बचाया जा सकता है।
- तकरीबन हर एक्सपर्ट का मानना है कि बच्चों को पॉर्न से डरा-धमका कर दूर नहीं रखा जा सकता। हां, उन्हें इससे होने वाले नुकसान के बारे में बता कर आगाह जरूर किया जा सकता है।
- सेक्स एजुकेशन का रोल इस मुकाम पर इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यही पॉर्न की उत्सुकता को दबाने का काम करता है। अगर बच्चों को पॉर्न देखना वक्त की बर्बादी और अपनी प्राथमिकताओं में सबसे पीछे नजर आने लगेगा तो उन्हें इस तरह की आदतें पड़ने की संभावना कम हो जाएगी।
- पॉर्न क्यों बुरा है इसके लिए बच्चों को तार्किक जवाब देना ज्यादा जरूरी है। बच्चे को डांटने फटकारने से बेहतर है कि उसे वक्त की बर्बादी और मानसिक रूप से होने वाली परेशानियों के बारे में बताया जाए। उसे यह भी बताया जा सकता है कि एक खास उम्र में पहुंच कर इसे देखने में कोई बुराई नहीं है।
- अरुणा ब्रूटा का कहना है कि अगर बच्चे की मां फोन पर लगातार अपने मेकअप और फैशन के बारे में और पिता पार्टियों और एंजॉय करने की बातें करते रहेंगे तो उन्हें सुन कर बच्चे के मन में भी एंजॉय करने का भाव पैदा होने लगेगा। उसके भीतर भी 'फिजिकल प्लेजर' की समझ पैदा होगी और वह इस तरह की एक्टिविटी में आगे बढ़ने लगेगा।
Block addresses - किसी खास यूआरए या आईपी अड्रेस को लॉक कर सकते हैं।
Filter content - इस फिल्टर के जरिए कुछ खास कंटेंट फिल्टर किया जा सकता है।
Manage usage - इसके जरिए इंटरनेट असेस और टाइम को कंट्रोल किया जा सकता है।
Monitor activities - इसके जरिए जाना जा सकता है कि किस वक्त कंप्यूटर पर क्या गतिविधि की गई है।
- अक्सर पॉर्न देखने की शुरुआत सर्च इंजन से होती है। कोई खास शब्द के जरिए पॉर्न साइट तक पहुंचा जाता है। इसका सबसे आसान तरीका है पैरंटल लॉक लगाना
Start button पर जाएं फिर Control Panel पर क्लिक करें और User Accounts and Family Safety पर क्लिक करें और Set up parental controls for any user। इसे आप किसी खास पासवर्ड से प्रोटेक्ट कर सकते हैं।

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